My satiric opinion on Indian Education System [Hindi]

 भारत मे एक शिक्षण व्यवस्था को लेकर बडा ही द्वंद मचा हुआ है।शिक्षण व्यवस्था को पूरी तरह निराधार घोषित कर दिया गया है और वह भी अधिकतर उनके द्वारा जो स्वंय ही इस शिक्षण व्यवस्था से शिक्षित हुए है।वह निर्जलता से इस तथ्य को दरकिनार कर देते है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य उनके खाली मस्तिष्क को खुले हुए मस्तिष्क से परिवर्तित करना है।यदि वह तर्क-वितर्क कर रहे है,इसके फर्क नही पडता वो पक्ष मे है या विपक्ष मे है,तो इसका अर्थ स्पष्ट कि शिक्षा ने अपना कार्य बखूबी निभाया है।

तो क्या कोई समस्या नही है? 

नही है!हम सब अभी परिभाषा मे भ्रमित है।हम अब तक शिक्षण को प्रशिक्षण समझते आए है।शिक्षण और प्रशिक्षण दोनो ही अलग शब्द है और आपस से इतना भी लेना-देना नही है जितना महिमामंडन किया गया है।प्रशिक्षण देकर आप एक सिंह को भी कुर्सी पर बैठा सकते और एक वानर से दोपहिया वाहन चलवा सकते है।किंतु आप इन्हे कभी भी शिक्षित नही कर सकते है।इन्हे तर्क-विर्तक करना नही सिखा सकते है।आजकल गली-गली हर चौराहे पर शिक्षण संस्थान खुले हुए है जो युद्ध स्तर पर स्नातक अनपढों का निर्माण कर रहे है जिनके पास ना कोई कौशल है और ना ही कोई तकनीकी ज्ञान।यह एक दुर्भाग्य कि प्रशिक्षण संस्थान प्रशिक्षुओं को शिक्षित करने मे अति व्यस्त है। 

हम शिक्षण प्रक्रिया मे एक अति व्यापक समस्या यह है कि हमारे शिक्षक,समाज और यहा तक कि विश्वविद्यालय स्वाकारोक्ति भी स्मरण शक्ति को अधिक महत्व देती है ज्ञान से।हमारी परिक्षाएं तो इस तरह से निर्मित है की वो विद्यार्थियों के ज्ञान का मुल्यांकन करे किंतु हमारे शिक्षको को अपना लिखाया हुआ ही उत्तर चाहिए व बाकि सबको अंक। 

मेरा सुझाव 

शिक्षा प्रणाली का बचाव करना संशोधन की अनदेखी नहीं करता है।मेरी राय में छात्रों को समूह बनाने के बजाय विषयों के चयन में अधिक स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।  औपचारिक सामान्य शिक्षा को हाई स्कूल तक सीमित करना चाहिए ततपश्चात सम्मानित व्यवसायों के विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।उदाहरण के लिए एक सॉफ्टवेयर डेवलपर को उतनी आवश्यकता नहीं हो सकती है रसायन विज्ञान जितना उसे को निगलना पडता है,एक छात्र जोकि दवाओं में रूचिबध है उसे उतनी आवश्यकता नहीं हो सकती है भौतिकी के ज्ञान कि,एक लेखाकार के लिए कैलकुलस निष्काम हो सकती है।सबसे महत्वपूर्ण यह है कि कलाकार को इंजीनियरिंग का अध्ययन करने के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए।अतः पाठ्यक्रमों को व्यवसाय के संबंध में व्यवस्थित किया जाना चाहिए,किंतु इसके अपेक्षा समूहों के संबंध में व्यवसाय की व्यवस्था की जाती है। इसके अतिरिक्त हर शहर में अधिक से अधिक प्रशिक्षण संस्थान होने चाहिए, जो बड़े पैमाने पर ग्रे कॉलर में प्रशिक्षण देते हो। 

निष्कर्ष

इस विस्तृत चर्चा से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि निश्चित रूप से प्रणाली में संशोधन की गुंजाइश है,किंतु अधिक महत्वपूर्ण यह है कि कार्यान्वयन पर ज्यादा चर्चा की जानी चाहिए।छात्र की स्मरण शक्ति को बढ़ाने और शिक्षाविदों में उसके खराब प्रदर्शन की आलोचना करने के बजाय हमें उसकी क्षमता पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए।अंको के आधार पर छात्र का विविधीकरण अमानवीय है।



Comments