क्या समलैंगिक विवाह को भारत में मान्यता मिलनी चाहिए?

सर्वप्रथम हमें यह चयन करना होगा की भारत समुदायों का समूह है या व्यक्तियों का संगठन! हमे यह स्पष्ट करना होगा की 'मेरा संविधान' 'मुझे' मिलता है या मेरे संप्रदाय को। क्योंकि यह चयन ही भविष्य में हमारे प्रत्येक नागरिक संबंधित कानून की आधारशिला बनना चाहिए। यदि हम भारत मे प्रत्येक व्यक्ति तक लोकतंत्र पहुंचाने में असमर्थ हैं तो क्या हम लोकतंत्र है?

कोईं व्यक्ति किसी के साथ रहना चाहता है, अपना जीवन उसके साथ जीना चाहता है; तो इसमे किसी अन्य व्यक्ति को क्या समस्या हो सकती है? कोईं 'पागल कुत्ता' 'गाॅंव' के लिए समस्या हो सकता है, किंतु कोई 'कुत्ता' कभी भी नही!

समलैंगिकता कोईं रोग नही है। कोईं व्यक्ति चुनता नही है कि उसे स्त्री या पुरुष मे से किससे यौन आकर्षण है; अपितु यह प्राकृतिक है। जैसे पुरूष का स्त्री के प्रति आकर्षण, स्त्री का पुरूष के प्रति आकर्षण सामान्य है, ठीक उसी प्रकार पुरूष का पुरूष के प्रति और स्त्री का स्त्री के प्रति आकर्षण सामान्य होना चाहिए।

भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रत्येक व्यक्ति को जीवन जीने का अधिकार देती है। यह किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र का प्रथम कर्तव्य है‌। यदि भारत मे किसी व्यक्ति को अपने 'प्रेम' के साथ जीवनयापन करने के लिए एक लंबा कानून संघर्ष करना पडता है तो यह हमारे लोकतंत्र पर एक धब्बा है। जहाॅं आज हम चाॅंद पर यान भेजते है वहीं धरती पर हम 'चाॅंद' और 'यान' के मिलन को एक मानसिक रोग मानते है।

हमें एक समाज के तौर पर स्वंय को थोडा और अधिक लिबरल बनाना होगा। हमें 'प्रेम' और 'प्रेमियों' को उनके अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता देनी होगी।

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