How to manage population with a case study of Japan.

मनुष्य किसी भी राज्य के लिए उच्चतम संसाधन होते है। यदि मनुष्य नही होगें तो राज्य का भी कोईं अस्तित्व नही होगा। मनुष्य के ही ठहराव से राज्य का निर्माण होता है। किंतु यदि ठहराव निरंकुश हो जाए तो यह राज्य के लिए एक समस्या भी बन जाता है। यदि निरंकुश जनसंख्या को व्यवस्थित तरीक से प्रबंधित नही किया गया तो यह राज्य की अधोगति का भी कारण बन सकता है। वास्तव मे समस्या जनसंख्या नही किंतु अयोग्य, अकुशल, अज्ञानी, इत्यादि-इत्यादि जनता है। यदि जनता कुशल व योग्यताओं से परिपूर्ण होगी तो यथासभंव उस राज्य को जापान भी कह सकते है। जापान कि सफलता कि कहानी का आंरभ उसपर हुए परमाणु धर्षण के पश्चात होता है। अमेरिका ने जापान से समझौतें के तहत जापान को अपनी सेना को ना विकसित करने का व वर्तमान सेना को विघटित करने का आदेश दिया। अपनी इस पराजय से जापान ने बहुत कुछ सीखा तथा युद्धविराम देते हुए अपनी सेना को व्यापार मे कुदने का सुझाव दिया। अंतरराष्ट्रीय बाजार को खोलनें के लिए जापान ने अमेरिका के साथ ही हाथ मिला लिया। आज मात्र अमेरिका मे ही नही अपितु जर्मनी, चाईना इत्यादि देशों मे जापानी उत्पाद अपनी गुणवत्ता के लिए प्रचुर मात्रा मे विक्रय होते है। अपने उत्पादों की गुणवत्ता के विकास के लिए निम्नलिखित उपकरणों को उपयोग किया जाता है- Kaizen , six-sigma, 5S, poka yoke, total quality management, total productivity management. 

अपनी अर्थव्यवस्था को धक्का देने के लिए जापान ने अपने नागरिकों के भीतर बचत कि आदत को विकसित किया। इससे हुआ कि जापान के बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा मे धन हुआ जिसे नईं व्यापार ईकाईयों को स्थापित करने हेतु ऋण के रुप मे दिया गया। परिणामस्वरूप जापान मे उघोगों कि क्रांति हुई। इसके अतिरिक्त जापान ने अपनी शिक्षण व्यवस्था पर उल्लेखनीय कार्य किया। नैतिकता, चरित्र, नीति, मूल्यों, अखंडता, समयनिष्ठा, अनुशासन इत्यादि गुणों को प्रांरभिक शिक्षा मे ही विकसित किया जाता है। 

जनसंख्या को यदि सही दिशा दी जाए तो वह बिना संसधानों के भी राष्ट्र निर्माण कर सकती है और यदि अशिक्षा को राज राज्य मे स्थापित हो गया तो कितने ही संसाधन हो सब तबाह हो सकते है। 

"पूत सपूत क्या धन संचय, पूत कपूत क्या धन संचय"

सर्वप्रथम जनसंख्या को नियंत्रित करना होगा। उसके लिए मेरा सुझाव है कि संतान उत्पत्ति कि न्यूनतम उम्र ४० वर्ष कर देनी चाहिए तथा उन दंपति जो संतान ६० वर्षं कि आयु के पश्चात करते है उन्हें पुरस्कृत कर प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसा इसलिए करना क्योंकि जनसंख्या को रोकना के साथ साथ विलंबित करना भी जरूरी है। उदः एक व्यक्ति जिसकी नाम यश है व वर्ष २००० उसकी आयु २० वर्ष है। वह इस आयु मे संतान कि उत्पत्ति करता है जिसका नाम रियांश है। २० वर्ष पश्चात वर्ष २०२० मे उसकी आयु ४० वर्षं व रियांश कि आयु २० वर्षं है। अब रियांश संतान उत्पत्ति करता है जिसका नाम यशांश है। पुनः २० वर्ष पश्चात वर्ष २०५० मे यश कि आयु ६० वर्ष है, रियांश कि आयु ४० वर्ष है व यशांश कि आयु २० वर्ष है। पुनः यही चक्र दोहराता है और प्रियांश कि उत्पत्ति होती है। अतः वर्ष २०६० मे यश कि आयु ८० वर्ष, रियांश कि ६० वर्ष, यशांश कि ४० वर्ष, प्रियांश कि २० वर्ष है। इस तरह राज्य कि जनसंख्या किसी भी वक्त चार गुना होगी। किंतु यश ६० वर्षं कि उम्र मे रियांश का उत्पादन करता है तो राज्य की जनसंख्या दोगुना भी नही हो पाएगीं। वह एक-डेढ, एक-डेढ पर अनुरक्षित रहेगी। इससे एक और लाभ यह मिलेगा कि जो महिलाएं बीस वर्ष कि उम्र बीस वर्षों के बच्चों के पालन मे व्यस्त हो जाती है वह बीस से चालीस वर्षों तक राज्य मे प्रत्यक्ष रूप से भी योगदान देगी जिससे उनकी शिक्षा पर हुआ व्यय अपशिष्ट नही होगा, नाहि ४० वर्षं कि उम्र मे वह कार्यहीन होगी।

इसके अतिरिक्त "हम दों, हमारे दो" को सख्त कानून बनाकर समाज मे प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए। यदि दो लोग मिलकर दो से अधिक का निर्माण करेंगें तो जनसंख्या मे वृद्धि होगी व दो से कम का निर्माण करेगें तो जनसंख्या मे कमी होगी। यह बडा ही सामान्य सा गणित है।

शिक्षा व कौशल निर्माण राज्य के दो प्रमुख कार्य होने चाहिए। शिक्षण व प्रशिक्षण दोनों को अलग-अलग परिभाषित कर दोनों पर एक-दुसरे से अधिक कार्य होना चाहिए। स्नातक अनपढों कि भीढ को विलुप्त कर शिक्षित-कुशल जनसंख्या का निर्माण ही राज्य कि प्रगति कर सकता है। 

जनता से राज्य है, राज्य से जनता है। दोनो एक-दुसरे के पूरक है। अंतः दोनों को ही दोनों के विकास के लिए परस्पर संघर्ष करना होगा। 


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