Why religion is a scam and Why I am a Human?

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है व समुह मे रहना पसंद करता है। चार बर्तन एक ही टोकरी मे बजते जरूर है। समाज मे विभिन्न सदस्य के बीच मे मन-मुटाव होना अत्यंत ही स्वाभाविक है। इन्हीं मन-मुटावों को सुलझानें हेतु समाज के प्रौढ़ व्यक्तियों ने कुछ नियमों का गठन किया तथा सभी को मानने के लिए बाध्य किया। इन नियमों कि अवहेलना करने वालों कि दंड व्यवस्था भी बनाई गयी। 

यह नियम समाजिक, भौगोलिक, आर्थिक, इत्यादि स्थिति-परस्थितियों को ध्यान मे रखते हुए लिखा गया। अतः यह नियम जिस समय लिखे गए उस समय संभवता उचित हो क्योंकि उस समय मनुष्य को जितनी समझ थी उसने उतने ही नियम लिखे, वैसे ही नियम लिखे। कानून के राज कि जडें कमजोर थी इसलिए जन्नत-जहन्नम कि कल्पानाएं कि गयी। ईश्वर कि रचना कि गयी। समाजिक नियमावली पर कोई प्रश्न ना करे इसलिए उसके रचयाकर्ता को ईश्वर के निकटतम बैठाया गया। वास्तव मे ईश्वर का कोईं अस्तित्व नही है, ईश्वर मनुष्य कि मात्र के कल्पना है। जिस कल्पना पर वह अपनी समझ या अपनी पहुँच से बाहर वाले कृतियों को ईश्वर कि ईच्छा घोषित कर स्वंय को सुक्ष्म राहत देने का प्रयास करता है। 

अलग-अलग भौगोलिक स्थानों पर ईश्वर को अलग-अलग उपाधि दी गई तथा उन उपाधियों को देने वाले अलग-अलग सप्रंदायों ने अपने ईश्वर को ही श्रेष्ठ घोषित किया। किंतु यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो सभी सप्रंदायों का आंरभ एक ही व्यक्ति से आंरभ हुआ, उससे पहले उनका कोई अस्तित्व नही था। किसी ने स्वंय को ईश्वर का संदेशवाहक कहाँ, किसी ने स्वंय को ईश्वर का बेटा, व किसी ने स्वंय को ही ईश्वर घोषित किया। किंतु इनकी है स्व-घोषणाओं का कोई प्रमाण नही है। किसी नए संप्रदाय कि शुरूआत करना कुछ ज्यादा कठिन नही है। एक कागज लीजिए, एक कलम लीजिए और लिख दीजिए उसमे चार अच्छी बातों के साथ स्वंय को ईश्वर। अपने लिखें पर सवाल पुछने वालों नास्तिक, डेवील, या काफिर कि संज्ञा दीजिए व साथ प्रश्न पुछनें कि स्वंतत्रता ही छीन लीजिए। बधाई हो, आज से सहस्त्र वर्षों पश्चात अपने ईश्वर होने या ना होने पर कोई प्रश्न नही होगा। कोईं नही कहेगा कि आप सही हो या गलत। आप ईश्वर हो और यह प्रमाणित है क्योंकि आपका जन्म आज से हजार साल पहले हुआ था। 

परिवर्तन इस संसार का नियम है। भूमंडलीकरण ने समस्त संसार को एक समुह बना दिया। इस समुह-राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा संविधान कि रचना कि गयी है। यह संविधान लचीला है। इस सविंधान कि हर एक अनुच्छेद पर प्रश्न कि जा सकते है तथा न्यायालय मे चुनौती दी जा सकती है। वर्तमान सभ्यता इसमे अपने अनुकूल परिवर्तन सरलता से कर सकती है। अतः आपकों भी मै यही सुझाव दुंगा कि मात्र अपने राज्य के लोकतांत्रिक संविधान पर ही आस्था रखिए व इसके अतिरिक्त जितने भी पंथ सविधान है जोकि सदियों पहलें मनुष्य द्वारा लिखे गए है उनका परहेज कीजिए। 

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