what is constructive socialism?

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है व अपनी इस समाजिकता को प्रमाणित करने हेतु उसने प्रकृति के नियम से विपरीत एक ऐसी विचारधारा को उत्पन्न किया जो वास्तविक रूप से व्यवाहरिक करना असभंव है। समाजवाद योग्य-अयोग्य सभी व्यक्तियों कों समान से पुरस्कृत करने को कहता है। इससे होता है यह कि निठल्ले-नकाराओं के लिए समाजवाद एक पुरस्कार है जिसको वो स्वंय का अधिकार समझते है व मेहनती-लगनशील कार्यरत्त व्यक्ति के लिए एक दंड के अतिरिक्त वो और कुछ नही होता है। 

प्रकृति उसी को पुरस्कृत करती है जो उसके लिए सर्घंष करता है किंतु समाजवाद संर्घषकरता को अपने सर्घंष का फल सभी के साथ बाँटनें को कहता है। इससे होता यह कि आलस्य भोगी व्यक्ति को बिना कुछ करे कुछ मिल जाता है व मेहनती व्यक्ति को मेहनत करने के पश्चात भी अपने मेहनत के फल मे से कुछ खोना पडता है। परिणामस्वरूप मेहनती व्यक्ति मे अराजकता का भाव उत्पन्न होता है व आलसी मे और अधिक आलस्य। यदि यह समाजवाद है तो चोरी किसे कहते है? 

समाजवाद राज्य को अपाहिज़ करता है। यह व्यक्ति को विकाशन के लिए प्रेरित नही करता है। सीढियों कि ऊँचाई सभी के लिए बराबर है। सभी के अपने-अपने सर्घंष है। इन सर्घंषों से बलवान होकर व्यक्ति क्षितिज पर खडे होनें के योग्य बनता है। मान भी लीजिए आप गोदी मे उठाकर उसे क्षितिज पर पहुँचा भी देंगें तो क्या वो उस क्षितिज पर खडा हो पाएगा? हो सकता है वो लुढकता हुए लहुलुहान गढ्ढे मे जाकर गिर जाए। इसके अतिरिक्त यदि आप उसके पैरों मे "चाबुक" मारते तो वो अपनी क्षमताओं कों तोडता हुआ क्षितिज पर बलवान होकर पहुँचेगा। किंतु सीढियों पर चलते हुए उसे "पानी" पिलाया जा सकता है। यह रचनात्मक समाजवाद उसे क्षितिज पर जानें के लिए जिंदा भी रखेगा व प्रेरित भी करेगा। 

समाजवाद-साम्यवाद विचारधाराएं पढनें मे-लिखने मे बेहद ही रमणीय हो किंतु वास्तविक नही हो सकती है। वास्तविक संसार मे परिश्रम को पुरस्कृत करने वाली विचारधारा पुंजीवाद ही राज्य को सशक्त, सर्मथ, आत्म-निर्भर, व निरंतर कर सकती है। 

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