Why you shouldn't use dating application?

मनुष्य अपने आप मे एक जटिल प्राणी है। वह पहले स्वंय ही समस्या का निर्माण करता है ततपश्चात उन बेबजह समस्याओं का निवारण करने का समाधान ढूंढता है। जीवनसाथी कोई उत्पाद नही है जिसे ढूंढा जाए। खामखां बेवजह बेकरारी से इधर-उधर ढूंढता फिरता है और अपने आप को चोटिल करता है। भौतिक सुख-सुविधाओं मे संतोष ढूंढने का असफल प्रयास कर मायूस हो जाता है। किंतु उसके मन मे यह नही आता है कि मै या मेरा साथी कोई उत्पाद नही है जिसे बेचा या खरीदा जाए। आपका उद्देश्य अधिक से अधिक व्यक्तियों से संपर्क साधना होना चाहिए। आप जितने अधिक व्यक्तियों से वास्तविक रूप मे मेल-जोल करेगे उतने ही ज्यादा आपके मित्रों कि संख्या होगी। इन मित्रो मे से कब कोई आपका जीवनसाथी बन जाएगा, यह बात आपको भी नही पता चलेगी। 

इन व्यक्तियों को ढूढने मे कोई विशेष परिश्रम नही करना है। आपके विद्यालय, कार्यस्थल, मोहल्ला इत्यादि मे ही बहुत लोग है। बस आपको अपने क्षणिक शारिरिक आर्कषण मे थोडा नियत्रंण रखकर बिना किसी पूर्वानुमान के सभी इंसानों से एक से भाव से बातचीत करनी है। हाँ, दो व्यक्तियों मे परस्पर आकर्षण होना चाहिए किंतु नाली के गंदे कुत्ते से आकषर्ण होने पर दूध तो दिया जा सकता है पंरतु उसे गोद मे नही लिया जा सकता है। कोई व्यक्ति नाली के पानी मे भिगा हुआ है या नही ये जानने मे समय लगता है। इसलिए किसी के साथ भी किसी भी रिश्ते मे आने मे कि गई जल्दबाजी आपको मानसिक तौर बहुत पीडा दे सकती है। जब कोई रिश्ता जुडता है तो वह रिश्ता नही जुडता है, दो लोग आपस मे जुडते है और जब वो रिश्ता टूटता है तो मात्र वो रिश्ता नही टूटता है। अतः यह मिनटो मे लाखो उत्पाद को अंगुठा इधर-उधर करके अपने मानसिक संतुलन को इधर से उधर मत कीजिए। 

अंतः निष्कर्ष यह की अपने जीवन मे पोपटलाल मत बनिये अपितु टप्पू बनिए। समझदारों को इशारा ही काफी होता है। धन्यवाद! 




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